Bhagwat geeta top18 Shlok in Hindi

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ 1
(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)
हिंदी अनुवाद: हे भारत! जब-जब धर्म का पतन होता है,
अधर्म का उद्भव होता है, तब-तब मैं अवतार लेकर आता
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ 1 (चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7) हिंदी अनुवाद: हे भारत! जब-जब धर्म का पतन होता है, अधर्म का उद्भव होता है, तब-तब मैं अवतार लेकर आता
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥ 2
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)
हिंदी अनुवाद: कर्म ही तेरा अधिकार है, फल की इच्छा मत कर। फल की आशा में कर्म मत कर, कर्म में ही लगा रह)
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उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ 3
(षष्ठ अध्याय, श्लोक 5)
हिंदी अनुवाद: अपने आपको अपने ही प्रयासों से ऊपर उठाओ, खुद को नीचे न गिरने दो। मनुष्य का अपना आत्मा ही उसका मित्र है और अपना आत्मा ही उसका शत्रु)
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ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते
सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥ 4
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)
हिंदी अनुवाद: “व्यक्ति जो विषयों पर ध्यान करता है, उसका उन विषयों में आसक्ति उत्पन्न होता है। आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और काम से क्रोध उत्पन्न होता है॥”
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यदा संहरते चायं कुर्मो रात्रिस्तथा ।
तदा तत्त्वमसि पश्यन् कालो न पश्यते मुने ॥ 5
(अष्टम अध्याय, श्लोक 20)
हिंदी अनुवाद: हे मुनिवर! जब दिन कार्य पूरा होकर रात आती है, उस समय तत्त्वदर्शी ज्ञानी पुरुष परमात्मा को ही देखता है, उसे काल दिखाई नहीं देता
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अशाश्वतं खलु धर्मराज्यं तद्भ्रातृभागो युधि कुरुनेत्राणि गच्छन्ति मम ।
ईशुभिश्च परावरे षु राज्यं संजय हे कुरुनन्दन ॥ 6
हिंदी अनुवाद: धर्मराज्य तो अशाश्वत है, इसमें भाइयों को ललकारना व्यर्थ है। हे कुरुनंदन! तुम तो मेरी आँखों के समान हो, इसलिए शीश झुकाकर भगवान कृष्ण की शरण में जाओ
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यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा ।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंशसम्भवम् ॥ 7
(अध्याय 10, श्लोक 41)
हिंदी अनुवाद: जो कुछ भी अस्तित्व में है चाहे वह श्रीमती हो या विजयी पराक्रमी, वह सब मेरे तेज से उत्पन्न हुआ है, अतः तुम मेरी शरण में आओ
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मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ।
मामेकं शरणं व्रज विश्वात्मन्मा शुचः स्थिरम् ॥ 8
(अध्याय 7, श्लोक 7 )
हिंदी अनुवाद: इस संसार की सारी वस्तुएँ मणियों की माला में पिरोए हुए मोतियों की तरह मुझमें पिरोई हुई हैं। अतः हे विश्वात्मन्! मेरी शरण में आओ, मुझमें ही तुम्हारा कल्याण है
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मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम् ।
नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिम् परमां गताः ॥ 9
(अध्याय 8, श्लोक 15)
हिंदी अनुवाद: जो महात्मा मुझे प्राप्त हो गए हैं, वे दुःखों के भंडार इस अशाश्वत संसार में फिर कभी जन्म नहीं लेते
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मां च यो व्यवसायो युक्त आसीत स एव स उक्तवान् ।
स सुकृती च स युक्तश्चेति त्रिविधः नारः स उच्यते ॥ 10
(अध्याय 7, श्लोक 17)
हिंदी अनुवाद: जो मुझमें लगा हुआ है, जो मुझे खोजता है, जो मेरी उपासना करता है, ऐसे तीन प्रकार के भक्त मुझे प्रिय हैं
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नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥ 11
(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
हिंदी अनुवाद:”शस्त्र इस आत्मा को नहीं काट सकते, आग इसे नहीं जला सकती, पानी इसे नहीं भिगो सकता, और हवा इसे नहीं सुखा सकती।”
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परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ 12
हिंदी अनुवाद: सज्जनों का उद्धार करने और दुष्कर्मियों का विनाश करने के लिए मैं युग-युगान्तर में अवतरित होता हूं।
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वेदाहमेकं शार्दूलविक्रिडितं धर्मजिञा सुसंहितम्।
अथो मे भगवानुवाच मूलशास्त्रम्॥ 13
हिंदी अनुवाद: मैंने वेद का सार एक ग्रंथ में संकलित कर तुम्हें दिया है जिसे धर्मशास्त्र कहते हैं। वही मूल शास्त्र है।
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मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः ॥ 14
हिंदी अनुवाद: इस सारे विश्व को मैंने अपने एक अव्यक्त रूप में फैला रखा है, समस्त प्राणी मुझमें स्थित हैं, परंतु मैं उनमें नहीं हूं।
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ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया। 15
हिंदी अनुवाद: हे अर्जुन! ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में विराजमान है। माया के यंत्र के द्वारा सभी प्राणियों को भ्रमित किए हुए है।
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तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते॥ 17
हिंदी अनुवाद: जो सदा मेरी भक्ति में लीन प्रेमपूर्वक मुझे भजते हैं, उन्हें मैं ऐसा बुद्धियोग देता हूँ जिससे वे मुझ तक पहुँच जाते हैं।
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अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥ 18
हिंदी अनुवाद: जो लोग मुझे ही सदा ध्याते रहते हैं और मुझमें ही लीन रहते हैं, उन सदायोगरत भक्तों की मैं स्वयं रक्षा करता हूँ।
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